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Sunday, June 13, 2010
Wednesday, June 02, 2010
Poem & Sketch : कंदील :)
आज शाम
यूँ ही बाज़ार में घूमते हुए
नुमाइश में लगी
एक कंदील दिखी
मुझे टकटकी लगाए ताकते हुए ,
इसलिए खरीद लाया हूँ
वो कंदील नुमाइश से,
सोचता हूं
अगली दफ़ा जब आओगी तुम
तो देखूँगा तुम्हे इसी
कंदील की मध्यम रोशनी में,
पढ़ा था कहीं
अभी याद नही
क़ि
कंदील की रोशनी में
ज़िस्म नही दिखते
हाँ
रूह बिल्कुल साफ़ नज़र आती है
-यात्री
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