डूबते सूरज की
छाँव में
जब तुम
हाथ पकड़ कर मेरा
कदम से कदम
चूमते हुए
चहलकदमी करते थे,
तुम्हे नही मालूम
पर देखा था मैने
समंदर को तरसते हुए
हमारी "Kisses" से जलते हुए .........
बरस गिनते गिनते
अब ऊँगलियाँ भी
कम पड़ गईं,
अब भी जाती हूँ
मैं साहिल पे
बिना तेरे साए के,
लेकिन जुटा नही पाती हिम्मत
समंदर से नज़रें मिलाने की
... जानता है वो बेबसी मेरी
इसलिए चिढ़ाता है
अपनी लहरें
फेंक - फेंक मेरे पाँवों पे...
मैं चुपचाप
लौट आती हूँ,
गीले पैरों में
रेत समेटे
..... तुम एक बार
फिर से आओगे ना
मुझे जवाब देना है
समंदर को फिर से.........
© Ajay kr Saxena
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