उफ़ कितना दर्द है तुम्हारे जोडो में
तुम दिन - रात कितनी मसक्कत करते हो,
आँखें भी थकी थकी सी हैं
खुलने भर की भी हिम्मत नहीं,
सांस फूल के कुप्पा हो गई है
तुम कितनी देर से चक्कर लगा रहे हो,
ख्वाब भी नहीं बुन पाते हो अब
तुम नींद का पैग लगाने के बाद भी,
हर तरफ लोग विरुद्ध है तुम्हारे
तुम बेवजह लड़ लड़ के परेशां हो,
.............
.............
ये सब बातें सुनी-कहीं सी लगती है न,
उम्मीद करता हूँ तुम जानते हो
ये सब बहाने हैं,
और तुम
इस सब बहानो से भी सयाने हो
-यात्री
© Ajay Kr Saxena
3 comments:
Nicely Written...
mast hai [:)]
It Sounds Cool
Post a Comment