मेरे रुखसत के बख़त
पूछा था उसने,
" जा रहे हो जाने के लिए ? "
या
" जा रहे हो आने के लिए ? "
तमाम दिन अब तो जल चुके है सूरज के तले
लेकिन हर रात
उसके वो आख़िरी लफ्ज़
टिमटिमाते हैं जहन में तारों की तरह.
" जा रहे हो जाने के लिए ? "
या
" जा रहे हो आने के लिए ? "
मैं रोज़ दर रोज़
करवट बदल,आँखों को ढक सो जाता हूँ.
फिर भी,
कभी कभी,
देर रात पाया है मैंनै
खुद को खड़े हुए
ड्योढ़ी पे.
- यात्री