Tuesday, October 26, 2010

My Poem : सरकती रेत !!!


मुट्ठी में जो रेत है,
सरक रही है धीरे धीरे
दिखता है सबको,
और साथ ही
कसती जाती है मुट्ठी 
सरकती रेत को रोकने के लिए,
रेत तो सारी
शर्तिया सरक जानी है 
जिससे मुक्त हो सके
हाथ तुम्हारे,
जुड़ने के लिए,
झुकने के लिए,
प्रभु के आलिंगन के लिए,
Choice तुम्हारी है
मुट्ठी और कस लो,
या
एक झटके में खोल दो... 

- यात्री

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