Wednesday, July 21, 2010

My Poem : अब शायद.....



मेरी
आँखों पे चिपकी
सपनो की पन्नी
उड़ा दी है उसने,
अब सुबह, सुबह जैसी
और शाम, शाम जैसी
ही दिखती है.
अब शायद .....
मैं, खुद जैसा दिखूं
अब शायद.....
तुम, तुम जैसी दिखो

-यात्री

2 comments:

achala nupur said...
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Arpit said...

wah.. kya baat hai..