तुम्हारी शिक़ायत
बिल्कुल वाज़िब है दोस्त मेरे,
मैं गा सकता हूँ तुम्हारे लिए भी
अपने चुनिंदा गीत
सबसे मधुर सुर में,
मैं तैयार हूँ तुम्हारे लिए भी
नृत्य करने को
मीरा की तरह बेसुध हो,
मैं तुम्हारे माँगने से पेश्तर
कर सकता हूँ
अपनी वसीयत नाम तुम्हारे,
मुझे हर्ष होगा
तुम्हे अपना प्रियतम बना
सब कुछ कुर्बान करने में,
लेकिन
फिर भी मैं ऐसा क्यों नही करता ??
क्योंकि, दोस्त मेरे
माफ़ करना
पर तुम आदतन मोल लगा दोगे
हर एक शह का मेरी
और वो....
:-) :-) :-) :-) :-) :-)
क्या कहूँ मैं
तुम शायद अभी नही समझोगे !!!!!
-यात्री
© Ajay kr Saxena
No comments:
Post a Comment