Thursday, May 06, 2010

कोरा काग़ज़

एक बिल्कुल सुफेद कोरा काग़ज़
मिल गया है मुझे,
आनद सा महसूस होता है
कहीं ज़हन में मेरे,
कोरा देखे कुछ भी 
कई बरस जो गये,
हा हा हा हा .. 
तुम लेकिन नही सुधरोगे कभी, 
तुम फिर से कलम
डुबोने लगे हो दवात में ........

- यात्री

1 comment:

Arpit said...

Meri copy kora kagaj.. Kori hi reh gyi.. :P